एक अच्छे राष्ट्र की धरोहर उस राष्ट्र की जनता होती है। जिस राष्ट्र में देश प्रेम व राष्ट्र रक्षा की भावना अंकुरित होती है एवं फलती फूलती है वह राष्ट्र निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। तथा उस राष्ट्र में शान्ति ,सदभावना व प्रेम का उदगम होता ही. रहता है।  जन व जन की संस्कृति भूमि तथा भूमि पर बसने वाले जनमानस इन तीनों के आपसी सम्मिलन से ही एक राष्ट्र का स्वरूप बनता है।


भारत विविधताओं वाला देश है जहाँ अलग अलग धर्म व जाति के लोग रहतें है तथा इनकी संस्कृति में भी अंतर होता है। फिर भी जब राष्ट्र की बात आती हैं तो राष्ट्रीय एकता की भावना उभर कर सामने आ ही जाती है। राष्ट्रीय नवनिर्माण  या नये राष्ट्र के स्वरुप पर अगर बिचार करें  तो सबसे पहले जन और जन की आकांक्षा व संस्कृति पर यह निर्भर करता है कि राष्ट्र का स्वरूप कैसा होगा। राष्ट्रीयता की जड़ें पृथ्वी मे जितनी गहरी होंगी उतनाही राष्ट्रीयता की भावना का बीज अच्छा अंकुरित व फलिभूत होगा। और जितना ही अच्छा अंकुरण होगा। उतना ही अच्छा राष्ट्र का विकास होगा। एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण हेतू जन सहयोग की भावना, जन जन की सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं राष्ट्रभक्ति की भावना का उदगम किये बिना संभव प्रतीत नही होता। एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के लिए देश के नौनिहालों को स्वस्थ व शिक्षित किए बिना स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण की कल्पना करना ,एक कोरी कल्पना मात्र बनकर रह जयेगी। जिस राष्ट्र में शिशु के जन्म से लेकर युवा बनने तक संस्कार परक शिक्षा व देश प्रेम की शिक्षा दी जाती हो ईमानदारी व बन्धुत्व  के साथ साथ भाई चारा व सहयोग की भावना का पाठ पढाया जाता हो वह राष्ट्र कैसे स्वस्थ नही हो सकता। जिस राष्ट्र मे सुरक्षा, रोजगार, की चिंता युवा पीढ़ी व उसके परिवार को न होकर उस राष्ट्र के कंधों पर होता हो, उस राष्ट्र का विकास कैसे नही.हो सकता। जिस देश में जातिवाद ,लूट ,भ्रष्टाचार, व बेइमानी, की भावना उस देश के नागरिकों मे लेस मात्र भी ना हो । उस राष्ट्र का विकास कैसे नही हो सकता।। जरूरी है एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के  लिए जन जन की सुरक्षा, शिक्षा, के साथ साथ संस्कार परक शिक्षा व कर्तव्य परायणता का पाठ पढायें जाय। संस्कार परक शिक्षा ने प्रभु राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाया ।वही ग्यान की कमी व सही संस्कार न मिलने के कारण घनानंद को अपना राज्य खोना पड़ा ।  मातृभूमि पर निवास करनेवाले वाले मनुष्य राष्ट्र के अभिन्न अंग होते हैं, पृथ्वी हो और मनुष्य न हो तो एक राष्ट्र की कल्पना करना असंभव हैं। पर मनुष्य जंगली जानवरों के समान ब्यवहार करें उचित व अनुचित मे फर्क न कर सके ,न्याय अन्याय से परिचित ही ना हो  सिर्फ अपने पेट की भुख मिटाता हो , ऐसे मे स्वस्थ राष्ट्र व सुरक्षित राष्ट्र की कलपना करना संभव प्रतीत नही लगता।। एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण हेतू (सर्वे जनाः सुखिनः) की निति के साथ साथ कठोर व लघु कानून की जरूरत तो होगीं ही। पर इससे पहले देश के नौनिहालों को बाल्यकाल के 5 वर्ष मे देश प्रेम व राष्ट्र रक्षा तथा  संस्कार  का पाठ पढायें बिना स्वस्थ राष्ट्र की कल्पना करना समुद्र को लाठी.मारने जैसा होगा।एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण हेतू शिक्षण प्रणाली को ठीक किए बिना स्वस्थ राष्ट् के स्वरूप को निखारा नही जा सकता।  राष्ट्रवाद का नगाड़ा पिटने मात्र से एक स्वस्थ राष्ट्र का स्वरूप नही निखरता बल्कि एक सच्चे राष्ट्र सेवक बनकर जन जन कि सेवा.सुरक्षा के लिए कार्य करने से आशा की ज्योति जलेगी। देश में निवास करने वाले प्रत्येक नागरिक किसी न किसी रूप में अपने अपने ईस्ट. देव की पुजा ,आराधना करते ही है। और मन ही मन धन दौलत सुख सम्पत्ति की मांग भी कर लेते हैं ।मिले ना मिले धूप अगरबत्ती जलाते हैं।लड्डू मिठाई, फल ,फूल चढाते हैं. पर अपनी इस मातृभूमि. की पूजा के लिए उन्हें व उनके पास कुछ नहीं होता है।

जो भारत माता हमे अपने गोद मे पालती आंचल मे छुपाकर दुलारती, हमे भोजन बस्त्र, आवास, सुरक्षा, शान्ति, सदभावना, व प्रेम देती है। क्या हम सब का इतना भी फर्ज नही बनता की हम सब उनके लिए भी जिये।अब जरुरत है भारत माता के आंचल की रक्षा करने की प्रेम, सदभावना, शान्ति ,व वन्धुत्व कायम करने की भारत के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा शिक्षा एवं स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उठाने की ,जब तक जन जन का सहयोग न होगा ,तब तक यह राष्ट्र पिछड़े पन का शिकार बना ही रहेगा। उठो भारत के वीर सपूतों फिर से तुम हूँकार भरो ,नवयुग के इस पावन  बेला मे फिर से तुम संचार भरो ।विकसित राष्ट्र बनाने खातीर अपने को तैयार करो। (परिवर्तन का समय है )उठो  नौजवानो आगे बढो और भारत मे विकास की गंगा बहा डालो।
एक अच्छे राष्ट्र की धरोहर उस राष्ट्र की जनता होती है। जिस राष्ट्र में देश प्रेम व राष्ट्र रक्षा की भावना अंकुरित होती है एवं फलती फूलती है वह राष्ट्र निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। तथा उस राष्ट्र में शान्ति ,सदभावना व प्रेम का उदगम होता ही. रहता है।  जन व जन की संस्कृति भूमि तथा भूमि पर बसने वाले जनमानस इन तीनों के आपसी सम्मिलन से ही एक राष्ट्र का स्वरूप बनता है। भारत विविधताओं वाला देश है जहाँ अलग अलग धर्म व जाति के लोग रहतें है तथा इनकी संस्कृति में भी अंतर होता है। फिर भी जब राष्ट्र की बात आती हैं तो राष्ट्रीय एकता की भावना उभर कर सामने आ ही जाती है। राष्ट्रीय नवनिर्माण  या नये राष्ट्र के स्वरुप पर अगर बिचार करें  तो सबसे पहले जन और जन की आकांक्षा व संस्कृति पर यह निर्भर करता है कि राष्ट्र का स्वरूप कैसा होगा। राष्ट्रीयता की जड़ें पृथ्वी मे जितनी गहरी होंगी उतनाही राष्ट्रीयता की भावना का बीज अच्छा अंकुरित व फलिभूत होगा। और जितना ही अच्छा अंकुरण होगा। उतना ही अच्छा राष्ट्र का विकास होगा। एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण हेतू जन सहयोग की भावना, जन जन की सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं राष्ट्रभक्ति की भावना का उदगम किये बिना संभव प्रतीत नही होता एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के लिए देश के नौनिहालों को स्वस्थ व शिक्षित किए बिना स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण की कल्पना करना ,एक कोरी कल्पना मात्र बनकर रह जयेगी। जिस राष्ट्र में शिशु के जन्म से लेकर युवा बनने तक संस्कार परक शिक्षा व देश प्रेम की शिक्षा दी जाती हो ईमानदारी व बन्धुत्व  के साथ साथ भाई चारा व सहयोग की भावना का पाठ पढाया जाता हो वह राष्ट्र कैसे स्वस्थ नही हो सकता। जिस राष्ट्र मे सुरक्षा, रोजगार, की चिंता युवा पीढ़ी व उसके परिवार को न होकर उस राष्ट्र के कंधों पर होता हो, उस राष्ट्र का विकास कैसे नही.हो सकता। जिस देश में जातिवाद ,लूट ,भ्रष्टाचार, व बेइमानी, की भावना उस देश के नागरिकों मे लेस मात्र भी ना हो । उस राष्ट्र का विकास कैसे नही हो सकता।। जरूरी है एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के  लिए जन जन की सुरक्षा, शिक्षा, के साथ साथ संस्कार परक शिक्षा व कर्तव्य परायणता का पाठ पढायें जाय।संस्कार परक शिक्षा ने प्रभु राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाया ।वही ग्यान की कमी व सही संस्कार न मिलने के कारण घनानंद को अपना राज्य खोना पड़ा ।  मातृभूमि पर निवास करनेवाले वाले मनुष्य राष्ट्र के अभिन्न अंग होते हैं, पृथ्वी हो और मनुष्य न हो तो एक राष्ट्र की कल्पना करना असंभव हैं। पर मनुष्य जंगली जानवरों के समान ब्यवहार करें उचित व अनुचित मे फर्क न कर सके ,न्याय अन्याय से परिचित ही ना हो  सिर्फ अपने पेट की भुख मिटाता हो , ऐसे मे स्वस्थ राष्ट्र व सुरक्षित राष्ट्र की कलपना करना संभव प्रतीत नही लगता।। एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण हेतू (सर्वे जनाः सुखिनः) की निति के साथ साथ कठोर व लघु कानून की जरूरत तो होगीं ही। पर इससे पहले देश के नौनिहालों को बाल्यकाल के 5 वर्ष मे देश प्रेम व राष्ट्र रक्षा तथा  संस्कार  का पाठ पढायें बिना स्वस्थ राष्ट्र की कल्पना करना समुद्र को लाठी.मारने जैसा होगा।एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण हेतू शिक्षण प्रणाली को ठीक किए बिना स्वस्थ राष्ट् के स्वरूप को निखारा नही जा सकता।  राष्ट्रवाद का नगाड़ा पिटने मात्र से एक स्वस्थ राष्ट्र का स्वरूप नही निखरता बल्कि एक सच्चे राष्ट्र सेवक बनकर जन जन कि सेवा.सुरक्षा के लिए कार्य करने से आशा की ज्योति जलेगी।  देश में निवास करने वाले प्रत्येक नागरिक किसी न किसी रूप में अपने अपने ईस्ट. देव की पुजा ,आराधना करते ही है। और मन ही मन धन दौलत सुख सम्पत्ति की मांग भी कर लेते हैं ।मिले ना मिले धूप अगरबत्ती जलाते हैं।लड्डू मिठाई, फल ,फूल चढाते हैं. पर अपनी इस मातृभूमि. की पूजा के लिए उन्हें व उनके पास कुछ नहीं होता है। जो भारत माता हमे अपने गोद मे पालती आंचल मे छुपाकर दुलारती, हमे भोजन बस्त्र, आवास, सुरक्षा, शान्ति, सदभावना, व प्रेम देती है। क्या हम सब का इतना भी फर्ज नही बनता की हम सब उनके लिए भी जिये।अब जरुरत है भारत माता के आंचल की रक्षा करने की प्रेम, सदभावना, शान्ति ,व वन्धुत्व कायम करने की भारत के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा शिक्षा एवं स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उठाने की ,जब तक जन जन का सहयोग न होगा ,तब तक यह राष्ट्र पिछड़े पन का शिकार बना ही रहेगा। उठो भारत के वीर सपूतों फिर से तुम हूँकार भरो ,नवयुग के इस पावन  बेला मे फिर से तुम संचार भरो ।विकसित राष्ट्र बनाने खातीर अपने को तैयार करो। (परिवर्तन का समय है )उठो  नौजवानो आगे बढो और भारत मे विकास की गंगा बहा डालो।